गीता-माहात्म्य: जीवन जीने की कला (Gita-Mahatmya: Jeevan Jeene Ki Kala) – This title highlights the Gita-Mahatmya as an art of living
श्रीमद्भगवद्गीता के विषय में जो माहात्म्यपरक वंदना आती है, वहीं से इसका शुभारंभ होता है। भगवान श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास के मुख से निकला स्तुति का वाक्य है- गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः । या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता ।। “जिसका गायन किया जा सके, ऐसा सुंदर काव्य है गीता। इसके गायन व मनन करने के बाद … Read more