ब्रह्म मुहूर्त– प्रकृति माँ अपने दोनों हाथों से स्वास्थ्य, बुद्धि, मेधा, प्रसन्नता और सौंदर्य के अमित वरदानों को लुटा रही होती है, जबकि जीवन और प्राणशक्ति का अपूर्व भंडार प्राणिमात्र के लिए खुला हुआ होता है, तब हम बिस्तरों में पड़े निद्रा पूरी हो जाने पर भी आलस्यवश करवटें बदल-बदलकर अपने शरीर में विद्यमान इन संपूर्ण वस्तुओं का नाश कर रहे होते हैं। हमें यह ज्ञान भी नहीं होता कि प्रभात के पुण्यकाल में निद्रा की गोद में पड़े पड़े हम प्रकृति के कितने वरदानों से वंचित हो रहे हैं।ब्रह्ममुहूर्त का लक्षण धर्मशास्त्रों में इस प्रकार वर्णन किया गया है। यथा-
रात्रेः पश्चिमवामस्य मुहूर्ती यस्तृतीयकः।
स ब्राह्य इति विज्ञेयो विहितः स प्रबोधने ॥
रात्रि के अंतिम प्रहर का जो तीसरा भाग है, उसकोब्रह्ममुहूर्त कहते हैं। निद्रा त्याग के लिए यही समय शास्त्रविहित है।
भगवान मनु के आदेशानुसार तो-
ब्राह्मे मुहूर्ते बुद्ध्येत।
ब्रह्ममुहूर्त में ही उठना चाहिए।
यदि मनुस्मृति को हम उस काल के कानून और ऑर्डिनेन्सों की पुस्तक स्वीकार करें, जैसा कि आधुनिक गवेषक मानते हैं, तो हमें मानना पड़ेगा कि मनु के समय में प्रजा के लिए उपर्युक्त आदेश, कानून मानना अनिवार्य होता था और इसके विपरीत आचरण वाले के लिए दंड का विधान था। यथा-
ब्राह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी।
तां करोति द्विजो मोहात् पाद कृच्छ्रेण शुद्ध्यति ।।
चूंकि प्रात:काल की निद्रा पुण्यों-सत्कर्मों का नाश करने वाली है, इसलिए आलस्यवश जो द्विज प्रातः न उठे, उसे ‘पाद कृच्छ’ नामक व्रत करके उसका प्रायश्चित करना चाहिए।
मनु के इस नियम का उस समय सर्वत्र ही आदर के साथ पालन होता था। सभ्य मानव से राक्षसपर्यंत सभी इस नियम को मानते थे। भारतीय साहित्य के सबसे पुराने ऐतिहासिक ग्रंथ श्री वाल्मीकि रामायण में हमें इस संबंध का बड़ा सुंदर वर्णन प्राप्त होता है।
हनुमान जी जगज्जनी श्री जनकनंदिनी की खोज में अशोक वाटिका में पहुंचे हैं, रात्रि का अंतिम प्रहर है। श्री वाल्मीकि जी ने लिखा है-
विचिन्वतश्च वैदेहीं किंचिच्छेषा निशाभवत् ।
षडङ्गवेदविदुषां क्रतुप्रवरयाजिनाम् ॥
शुश्राव ब्रह्मघोषान्स विरात्रे ब्रह्मरक्षसाम् ॥
– सु० कां०१८/१-२
इस प्रकार सीता की खोज करते-करते रात्रि थोड़ी शेष रह गई और तब हनुमान जी ने ब्रह्ममुहूर्त में वेदज्ञ और याज्ञिक पुरुषों द्वारा किए जाने वाले वेदपाठ को सुना।
ब्रह्म मुहूर्त में उठने के फायदे (Benefits of Brahmamuhrat)
प्रात: जागरण में जिन लाभों का ऊपर वर्णन किया गया है, वह कोरा वर्णन नहीं है, बल्कि स्वास्थ्यशास्त्र सम्मत है। यथा-
वर्णं कीर्ति यशः लक्ष्मीं, स्वास्थ्यमायुश्च विन्दति ।
ब्राह्ममुहूर्ते संजाग्रच्छ्यिं वा पंकजं यथा ॥
– भैषज्य सार ९३
ब्रह्ममुहूर्त में जागने वाला पुरुष सौंदर्य, लक्ष्मी, स्वास्थ्य, आयु आदि वस्तुओं को प्राप्त करता है। उसका शरीर कमल के सदृश सुंदर हो जाता है।
प्रातःकाल जागने से इतने लाभ क्यों हैं? (How is brahmamuhrat important)
इस प्रश्न का उत्तर प्रातःकाल की उस प्राणप्रद वायु में निहित है, जो प्राकृतिक रूप से उस समय बहा करती है। जिसके एक-एक कण में संजीवनीशक्ति का अपूर्व सम्मिश्रण रहता है। यह वायु रात्रि में चंद्रमा द्वारा पृथ्वी पर बरसाए हुए अमृत बिंदुओं को अपने साथ लेकर बहती है। इसलिए शास्त्रों में इसे वीर वायु के नाम से स्मरण किया गया है।जो व्यक्ति इस समय निद्रा त्यागकर,चैतन्य होकर इस वायु का सेवन करते हैं, उनका स्वास्थ्य, सौंदर्य, मेधा और स्मरणशक्ति बढ़ती है, मन प्रफुल्लित हो जाता है और आत्मा में नव चेतनता का अनुभव होने लगता है।
इसके अतिरिक्त संपूर्ण रात्रि के पश्चात प्रातः जब भगवान सूर्य उदय होने वाले होते हैं, तो उनका चैतन्यमय तेज आकाश-मार्ग द्वारा विस्तृत होने लगता है। यदि मनुष्य इससे पहले सजग होकर स्नानादि से निवृत्त हो, उपस्थान द्वारा उन प्राणाधिदेव भगवान सूर्य की किरणों से अपने प्राणों में उनके अतुल तेज का आह्वान करने योग्य बन जाए, तो वह पुरुष दीर्घजीवी बन जाता है।
वातावरण में गैसों का निश्चित अनुपात है, जो लगभग इस प्रकार हैं- ऑक्सीजन २१%, कार्बन डाइऑक्साइड ६% और नाइट्रोजन ७३% ।
विज्ञान के अनुसार संपूर्ण दिन वायु का यही प्रवहण क्रम रहता है, किंतु प्रातः और सायं जब संधिकाल होता है, इस क्रम में कुछ परिवर्तन हो जाता है। सूर्यास्त होने के बाद मनुष्य को प्राणशक्ति इसीलिए क्षीण पड़ जाती है कि उस समय जगत्प्राणप्रेरक भगवान सूर्य के अस्त हो जाने के कारण ऑक्सीजन अर्थात प्राणप्रद वायु भी अपने स्वाभाविक स्तर से निम्न हो जाती है। इसी प्रकार प्रातःकाल के समय उस वायु के अत्यधिक बढ़ जाने के कारण स्वास्थ्य संपादन में उसका समुचित उपयोग किया जाना चाहिए। यही इसका वैज्ञानिक रहस्य है।
संसार के सभी महापुरुषों ने प्रकृति के इस अलभ्य वरदान से बड़ा लाभ उठाया है।विश्ववंद्य महात्मा गांधी प्रतिदिन रात्रि में ३ बजे जागकरही अपने दैनिक कार्यों में लग जाया करते थे। पिछले पत्रों के उत्तर, समाचारपत्रों के लिए लेख तथा संदेशादि वे इसी समय तैयार किया करते थे। लिखने पढ़ने के लिए तो इससे उपयुक्त समय हो ही नहीं सकता। एकांत और सर्वथा शांत वायुमंडल में जबकि मस्तिष्क बिलकुल उर्वर होता है, ज्ञानतंतु रात्रि के विश्राम के बाद नवशक्तियुक्त होते हैं, मनुष्य कोई बौद्धिक कार्य करे, तो उसे इसके लिए विशेष श्रम नहीं करना पड़ेगा। इसलिए हमें प्रकृति के इस अमूल्य वरदान से लाभ उठाना चाहिए और अभ्यास करना चाहिए कि हम प्रतिदिन प्रातः उठ बैठें।
ब्रह्म मुहूर्त में उठने के लिए क्या करें?(Overcoming Challenges)
इस अभ्यास के लिए एक साधारण- सा उपाय कार्य में लाया जा सकता है। रात्रि को सोते समय ईश्वरस्मरण के अनंतर हमें अपनी चैतन्य आत्मा से प्रातः चार बजे उठने का संकल्प जता देना चाहिए कहना चाहिए, “मुझे प्रातः चार बजे जगा देना”। यह शत-प्रतिशत अनुभव की बात है कि प्रातः चार बजे आपकी नींद अवश्य ही खुल जाएगी। फिर आलस्य में आप न पड़े रहें, तो बिना किसीघड़ी की सहायता के उठने लगेंगे। भोर में जागने के लिए रात में नौ-दस बजे के भीतर ही सो जाना आवश्यक है। अधिक रात बीतने पर सोने से भोर में शय्या-त्याग करना तो कठिन है, यदि करें भी उसके लाभ के बदले हानि ही होती है। शरीर दुर्बल और अस्वस्थ हो जाता है, माथा भारी हो जाता है, आँखों में जलन पैदा होती है और कोई कार्य करने में उत्साह नहीं होता। अतएव भोर में चार- पाँच बजे जागने वाले को रात में नौ-दस बजे सो जाने का अभ्यास करना होगा और ऐसा ही करना उचित भी है।रात्रि में सब भावनाओं को मन से हटाकर शांत चित्त से शयन करने का अभ्यास करना चाहिए। ऐसा करने से अच्छी नींद आती है, जिससे सवेरे जागने पर आदमी का मन प्रसन्न तथा उत्साहपूर्ण होता है। वह अपने कार्यों का उत्तम रूप से संपादन करने में समर्थ होता है। यही नहीं, इस अभ्यास से अनेक प्रलोभनों, विपत्तियों तथा आशंकाओं से रक्षा होती है।
यदि आप दीर्घजीवी बनना चाहते हों, अपने हृदय को वसंतकालीन वायुप्रवाह की तरह आनंदोल्लासपूर्ण करना चाहते हों, अपनी धमनियों में झरझर शब्द करती हुई प्रवाहित होने वाली छोटी नदी की धारा की भाँति स्वच्छ रक्त की धारा प्रवाहित करने की अभिलाषा रखते हों, आयु को बढ़ाने वाली पुष्प-फलादि के सौरभ से पूर्ण प्रातः समीर का सेवन करके अपने जीवन की तेजस्विता बढ़ाने की इच्छा रखते हों, तो खूब तड़के शय्या-त्याग करने का अभ्यास करें।यदि आप इस जीवन में कोई महत्त्व का कार्य करके, अपने मानव जन्म को सार्थक बनाना चाहते हों, यदि अकाल मृत्यु से बचने की अभिलाषा रखते हों, तो प्रतिज्ञापूर्वक नियमित रूप से भोर में जागा करें तथा प्रात:कालीन वायु का सेवन करें और ईश्वर का नाम लेकर उत्साहपूर्वक अपने कार्य में प्रवृत्त हों।