क्या रंग भावनाओं को प्रभावित करता है? ( How colours affect our body?)

स्वास्थ्य-रक्षा में सूर्य किरणों का उपयोग

प्रकाश क्या है ? देखने में उसे सफेद चमक भर कहा जाता है, पर विश्लेषण करने पर उसके अंतराल में कुछ विशिष्ट शक्तिधता है। बलगम, बुखार, खुजली आदि रोगों में जमी हुई विकृतियाँ प्रधान कारण होती हैं। उन्हे निकाल बाहर करने में पीला रंग लाभदायक माना गया है।जिस प्रकार आवश्यक रासायनिक पदार्थ कम होने पर कई प्रकार के रोग एवं असंतुलन उत्पन्न होते हैं, उसी प्रकार प्रकाश रंगों की उपयुक्त मात्रा में कारणवश कमी-बेशी हो जाने पर भी स्वास्थ्य संकट उत्पन्न होता है। अतएव जहाँ चिकित्सा- उपचार में वनस्पतियों, क्षारों तथा खनिजों का उपयोग करके तद्विषयक घट-बढ़ को ठीक किया जाता है, उसी प्रकार विज्ञजन रंगों की न्यूनाधिकता हो जाने के संबंध में भी जाँच करते हैं और उस क्षतिपूर्ति के लिए किए गए प्रयत्नों को रंग चिकित्सा का नाम देते हैं।

प्रमुख रंग तीन ही हैं-लाल, पीला और नीला। इन्हीं के सम्मिश्रण से अनेक रंग बनते हैं। पीले और नीले के सम्मिश्रण से हरा, पीले और लाल के मिलने से नारंगी, नीले और लाल के मिलने से बैंगनी रंग बनता है। इस मिश्रण में उनकी मात्राएँ न्यूनाधिक होने से भी रंग बदलते हैं। उसी आधार पर उनके गुणों का भी मिश्रण

लाल (Red colour)

ठंढजनित रोगों में लाल रंग का उपयोग करने से ऊष्मा बढ़ती है। रक्तविकार एवं चर्मरोगों में भी उसका उपयोग किया जाता है। रक्त की कमी, उदासी, निराशा की मनःस्थिति में भी लाल रंग के कपड़े पहनने तथा उसमें रँगी वस्तुओं को संपर्क में रखने से लाभ होता है। उस रंग के गिलास में पानी पीने की भी उपयोगिता बताई गई है। गठिया, लकवा, सूजन और दरद में भी उसका प्रयोग एवं उपचार होता है।

पीला (Yellow colour)

पीला रंग पाचक माना गया है। पेट की अपच या अन्य अवयवों की परिपाक प्रक्रिया शिथिल हो जाने पर उसका उपयोग हितकर होता है। फलों में अधिकांश पीले होते हैं। आम, नीबू, पपीता, बेर, लुकाट, मकोय में अन्य गुणों के अतिरिक्त पाचन में सहायता करने की भी विशेषता है। बलगम, बुखार, खुजली आदि रोगों में जमी हुई विकृतियाँ प्रधान कारण होती हैं। उन्हे निकाल बाहर करने में पीला रंग लाभदायक माना गया है।

नीला(Blue colour)

नीला रंग शीतल है। इसे गरमी शांत करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। सिरदरद, नेत्ररोग, जलन, अनिद्रा, रक्तचाप, उत्तेजना जैसे रोगों को उष्णता प्रधान माना जाता है। इसलिए उनकी निवृत्ति के लिए नीला रंग उपयुक्त समझा गया है। चोट लगने, फोड़ा-फुंसी उठने, जहरीले कीड़ों के काट लेने पर इस रंग का कपड़ा पानी में भिगोकर पीड़ित अंग पर रखने से ठंढक की अनुभूति होती है। सूखी खाँसी, श्वास में भी इस रंग के उपयोग से राहत मिलती है।

पता कैसे लगाएं कि किस रंग की कमी है

किस रंग की शरीर में कमी है, इसका अनुमान इस आधार पर भी लगाया जाता है कि व्यक्ति की पसंद किस रंग की ओर अधिक आकर्षित होती है। खान-पान के संबंध में देखा गया है कि जिन रासायनिक पदार्थों की शरीर में कमी पड़ती है, उन्हें खाने के लिए मन विशेष रूप से चलता है। इच्छित वस्तु पाने पर तृप्ति ही नहीं मिलती, आवश्यकता की पूर्ति होने पर रोग से निवृत्ति भी मिलती है। यही बात रंगों के संबंध में भी है। कौन किसे पसंद करता है, इस रुचि भिन्नता को देखकर भी अनुमान लगाया जाता है कि किसे किस तत्त्व की आवश्यकता पड़ रही है?

रंगों की प्रभाव-क्षमता

सुप्रसिद्ध रंग चिकित्साविज्ञानी मेरी एंडर्सन का कहनाहै कि जिस प्रकार मानव स्वास्थ्य पर भवन-संरचनाओं (ज्यामितीय आकार-प्रकार) का प्रभाव पड़ता है, ठीक उसी तरह उनमें किए गए रंग-रोगनों का साज-सज्जा पर भी अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि भवन निर्माण के साथ अब ‘रंग-योजना’ को भी प्रमुखता दी जाने लगी है। इसके आधार पर कमरे आकर्षक और सुंदर तो बनते ही हैं, साथ ही उनके आकार में, लंबाई और चौड़ाई में भी परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगता है। लाल, नारंगी और पीले रंग से पुते कमरे अंदर से आकार में छोटे दीखते हैं, जबकि सफेद, आसमानी और नीले रंग के कमरे आकार में लंबे प्रतीत होते हैं। हरा रंग सही अनुपात दरसाता है। इन रंगों का प्रभाव मानवीय व्यक्तित्व पर पड़े बिना नहीं रहता। आसमानी रंग व्यक्ति के अहं को विस्तृत करता और वातावरण के साथ तालमेल बैठाकर चलने को प्रेरित, प्रोत्साहित करता है। लाल रंग व्यक्ति को स्वकेंद्रित बनाता है, जबकि हरा रंग हृदय के लिए अत्यंत हितकारी सिद्ध होता है।

रूस के प्रख्यात गुह्यविद् जार्ज इवानोविच गुरजिएफ के अनुसार रंगों के कुछ निश्चित सम्मिश्रण शांतिदायक प्रभाव डालते हैं, तो कुछ रंगों का प्रभाव मानवीय काया एवं मन पर विघातक भी होता है। ‘व्यूज फ्रॉम दी रियल वर्ल्ड’ नामक पुस्तक में उनके प्रवचनों का संग्रह प्रकाशित किया गया है, जिसमें बताया गया है कि प्रत्येक रंग का अपना विशिष्ट गुण होता है और नियम विशेष के आधार पर वे कार्य करते हैं। उनकी रासायनिक भिन्नता ही अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न करती है। उदाहरण के लिए, लाल रंग के प्रकंपन क्रोध दिलाते व रोष उत्पन्न करते हैं, जबकि आसमानी रंग के प्रकंपन (वाइब्रेशन्स) प्रेम- सहानुभूति को, सहृदयता की भावना को जाग्रत करते हैं। पीलापन युयुत्सा को भड़काता है।

क्या रंग एथलेटिक्स प्रदर्शन को प्रभावित करता है?

शारीरिक, मानसिक स्फूर्ति और उत्तेजना प्रदान करने में रंगों की प्रभावकारी भूमिका के संबंध में मैक्सिको विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने गहन अनुसंधान किया है। रंगों का खिलाड़ियों पर पड़ने वाले प्रभाव को जाँचने-परखने के लिए उन्होंने खिलाड़ियों के कपड़े तथा फुटबॉल जैसे खेल उपकरणों को भिन्न-भिन्न रंगों से रंगवाकर यह देखा कि इसका हार-जीत पर क्या कुछ प्रभाव पड़ता है ? इस आधार पर किए गए परीक्षणों से जो निष्कर्ष उभरकर सामने आए, उनसे पता चला कि रंग मात्र नेत्रों को ही सुरुचिपूर्ण- कुरुचिपूर्ण नहीं लगते, वरन उनका प्रभाव मानसिक स्थिति पर भी पड़ता है। फलतः हार-जीत के साथ उनका संबंध जुड़ता है। इस अध्ययन में पाया गया कि लाल रंग वाला पक्ष प्रायः शिथिल रहा, जबकि पीला एवं हलका नीला रंग सफलता दिखाता रहा।

एक प्रयोग में शिकागो खेल निर्देशकों ने खिलाड़ियों की थकान उतारने के लिए विभिन्न रंगों से कमरे पुतवाए और उनमें उन्हें ठहराया। मैदान में जाते समय उन्हें नारंगी रंग वाले कमरे में कपड़े बदलने और चाय पीने के लिए बुलाया जाता था। परीक्षण करने पर इससे उनमें स्फूर्ति और उत्तेजना का अनुपात बढ़ा हुआ पाया गया।

रोग दूर कर सकते हैं रंग ?

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी रंग के प्रभाव रोगियों पर जाँचने के लिए अनेक प्रयोग-परीक्षण किए हैं। उनने निष्कर्ष निकाला है कि जिन रोगियों को शांति एवं शीतलता की आवश्यकता थी, उनके लिए नीले रंग से पुते कमरे, जिनमें उसी रंग के परदे लगे हुए थे, अधिक लाभदायक सिद्ध हुए। मानसिक रोगियों को तो इससे विशेष रूप से राहत मिली। काले रंग का प्रभाव जी मिचलाने, चक्कर आने, ऊब लगने जैसा देखा गया। जिन जलयानों या वायुयानों के कमरे इन रंगों में रँगे थे, उन्हें परेशानी रही, किंतु जब उनकी रंग योजना बदल दी गई, तो यात्री प्रसन्नता अनुभव करने लगे। उन्हें उन्हीं कमरों में अच्छा लगने लगा। पीले रंग से विचार शक्ति और स्मरण शक्ति में अभिवृद्धि होती देखी गई है। विद्यार्थियों पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है। विशेषज्ञों का कहना है कि बुद्धिजीवी वर्ग को विशेषकर हलके पीले रंग के वस्त्रों तथा उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए। इससे वे उद्विग्न होने से बचे रहेंगे और एकाग्र रहने में सहायता मिलेगी।

रंगो का पाचन पर प्रभाव

मूर्द्धन्य रंग चिकित्साविज्ञानी एम० जी० हिब्बन ने अपने प्रयोगों में भोजन के रंगों का पाचन पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया है। एक बहुमूल्य सुस्वादु व्यंजन वाले भोज में उनने रंगीन बल्ब इस प्रकार जलाए कि पदार्थों का रंग कुछ से कुछ प्रतीत होने लगा। इसका परिणाम खाने वालों पर यह हुआ कि उनको अरुचि हो गई और वे आधे-अधूरे ही भोजन कर सके। इसके विपरीत हिब्बन ने एक दूसरी पार्टी आयोजित की, जिसमें सामान्य से खाद्य पदार्थ परोसे गए, किंतु रंगीन प्रकाश ऐसा अच्छा था कि थालियाँ, कटोरियाँ जिन वस्तुओं से सजी थीं, वे सभी बहुमूल्य और सुस्वादु लगने लगीं। फलतः मेहमानों ने आशा से अधिक खाया और दावत की हर वस्तु को सराहा।

रंगो का पढ़ाई पर प्रभाव

रंगों ने अपनी प्रभाशीलता की अमिट छाप शिक्षणतंत्र पर भी छोड़ी है। छोटे बच्चों की पुस्तकों में रंगीन चित्रों का होना आवश्यक है। इसके बिना पढ़ने के लिए उनका उत्साह ही नहीं उभरता। बच्चों की भाव-संवेदनाओं को उभारने में वर्णों से काफी सहायता मिलती है। लॉस एंजिल्स के प्रख्यात चिकित्सक डॉ० ब्राइट हॉस ने रंगों के माध्यम से विद्यार्थियों की शारीरिक क्षमता एवं बौद्धिक प्रखरता घटाने-बढ़ाने के अनेक प्रयोग भी किए हैं। इसके लिए उन्होंने एक जैसी स्थिति के छात्रों को वर्गों में बाँटकर उन पर लाल, नीले और पीले रंग के प्रभावों को देखा। उनने पाया कि आलसी और मंदबुद्धि वालों में उत्तेजना लाने के लिए लाल रंग अच्छा रहा, जबकि चंचल और आवेशग्रस्त रहने वालों को हलके नीले रंग से शांति मिली। पीले वर्ण की प्रतिक्रिया मध्यवर्ती रही। मध्य वर्ग के विद्यार्थी अपनी कुशलता और प्रसन्नता में पीले रंग से अभिवृद्धि होने की बात कहते थे। अधिकांश को वही रुचिकर भी लगा।

रंगो का व्यापार पर प्रभाव

यही प्रयोग कामकाजी व्यापारी वर्ग के लोगों पर भी किए गए। उनकी घड़ियाँ ले ली गईं और कई रंग के कमरों में बैठकर वार्तालाप करने के लिए उनके कई वर्ग योजनानुसार बैठा दिए गए। लाल रंग वाले कमरों में बैठकर बात करने वालों ने दो घंटे काटे, पर उन्हें चार घंटे जितने थकाने वाले लगे। उनमें गरमा-गरमी होती रही और किसी निष्कर्ष पर पहुँचे बिना ही उठ गए। इसके विपरीत नीले रंग वालों ने वार्ता के समय को वास्तविक के विपरीत आधा बताया। साथ ही हँसते-मुस्कराते बाहर निकले। उनने घनिष्ठता बढ़ाई और दोबारा ऐसी ही मिलन की आवश्यकता बताई। पीले रंग वाले कमरों के लोगों को समय का अनुभव उतना ही हुआ, जितना कि वस्तुतः बीता था। उनने उतनी ही अवधि में कितनी ही समस्याएँ सुलझाईं और कितने ही सौदे पक्के कर लिए। सभी सफलता पर प्रसन्न देखे गए। आत्मविश्वास बढ़ा हुआ पाया गया।

एक कारखाने के श्रमिकों को अधिक प्यास लगने और अधिक पेशाब जाने की शिकायत बढ़ गई। फलतः बीच-बीच में काम छूटता और उत्पादन कम होता। इस नई व्यथा का कारण विशेषज्ञों को बुलाकर तलाश कराया गया, तो प्रतीत हुआ कि कमरे काले रंग के पुते हुए थे। वह रंग हटाकर हरा रंग पुतवाया गया, तो उस व्यथा से सहज छुटकारा मिल गया। एक दूसरे कारखाने से मजदूर जिन लोहे के बकसों को ढोते थे, उनके अधिक वजनी होने की शिकायत करते थे। जब उनका रंग बदलकर हरा करा दिया गया, तो सभी की शिकायत दूर हो गई और अपेक्षाकृत हलकेलगने लगे।

गुणों का अभिवर्द्धन

गुणों के अभिवर्द्धन के संबंध में भी रंगों की उपयोगिता 1 है। पीला रंग सात्त्विक, नीला रंग राजसिक और लाल रंग तामसिक माना जाता है। प्रकृति की परख और सद्गुणों की• अभिवृद्धि के लिए भी रंगीन वस्त्रों तथा उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ एवं साधु प्रकृति के धर्मपरायण लोग पीला वस्त्र धारण करते हैं। भगवान राम एवं कृष्ण का वर्ण नीलकमल जैसा माना गया है। आकाश एवं समुद्र का रंग नीला है। उन्हें वैभव एवं वर्चस्व का प्रतीक = मानते हैं। रक्त और आग का रंग लाल होता है। क्रोधावेश में आँखें लाल पड़ जाती हैं। इनमें तमोगुण का दर्शन होता है। रंगों के उपयोग से उपर्युक्त गुण-स्वभाव में घट-बढ़ की जा सकती है। आरोग्य वृद्धि के साथ-साथ मानसिक एवं भावनात्मक स्थिरता को अक्षुण्ण रखने के लिए उपयुक्त रंग का चुनाव किया जाए, तो उसके फलितार्थ भी वैसे ही मिलते हैं।

जीवन में रंगों का महत्व

लाल रंग गरमी, उत्तेजना और चिड़चिड़ापन उत्पन्न करता है। इससे स्नायु विकार हो सकते हैं। इसके विपरीत नीला रंग शीतल और शांतिदायक होता है। गरमी वाले मौसम या स्थान में नीले रंग का उपयोग करने से आँखों के माध्यम से शरीर को भी राहत मिलती है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण रंगीन चश्मे हैं। लाल काँच वाला चश्मा लगाकर निकला जाए, तो चारों ओर आग बरसती दिखाई पड़ेगी और सिर गरम होने लगेगा। इसके विपरीत हरा या नीला चश्मा लगाकर निकलने पर कड़ी धूप भी हलकी प्रतीत होती है और बदली सी छाई लगती है। गरमी दूर करने के लिए यह छाता लगाने जैसा उपाय है।

नीले रंग के साथ स्नेह, सौजन्य, शांति, पवित्रता जैसी प्रवृत्तियाँ जुड़ती हैं। लाल रंग उग्रता, उत्तेजना, संघर्ष का प्रतीक है। सफेद में सादगी, सात्त्विकता, सरलता की क्षमता है। चाकलेटी रंग में एकता, ईमानदारी, सज्जनता कल्पनाशीलता के गुण हैं। पीले रंग में संयम, आदर्श, पुण्य- परोपकार का बाहुल्य है। हरे रंग में ताजगी, उत्साह, स्फूर्ति एवं शीतलता का प्रभाव है। सिलेटी में दूरदर्शी बुद्धिमत्ता की विशेषता है। काला रंग तमोगुणी है। वह निराशा, शोक-दुःख एवं बोझिल मनोवृति का परिचायक है। नारंगी रंग जीवन में आत्मविश्वास, साहस की जानकारी देता है। गुलाबी रंग में आशाएँ, उमंगें और सृजन की मनोभूमि बनाने की विशेषता है।

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