सूर्य हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है। वह हमें प्रकाश, ऊर्जा और जीवन देती है। सूर्य की किरणें हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। वे शरीर को विटामिन डी, फॉस्फोरस, कैल्शियम, आयोडीन, फॉस्फोरस, आदि महत्वपूर्ण पोषक तत्व प्रदान करती हैं। सूर्य की किरणें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती हैं और अवसाद को दूर करने में मदद करती हैं।
सूर्य की किरणों के स्वास्थ्य लाभ:
विटामिन डी(vitamin d):
सूर्य की किरणों से विटामिन डी का निर्माण होता है, जो हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। विटामिन डी की कमी से रिकेट्स, ऑस्टियोपोरोसिस, आदि रोग हो सकते हैं।
फॉस्फोरस(phosphorus):
सूर्य की किरणें शरीर को फॉस्फोरस प्रदान करती हैं, जो हड्डियों, मांसपेशियों और मस्तिष्क के लिए आवश्यक है। फॉस्फोरस की कमी से कमजोरी, थकान, चिड़चिड़ापन, आदि समस्याएं हो सकती हैं।
कैल्शियम(calcium):
सूर्य की किरणें शरीर को कैल्शियम प्रदान करती हैं, जो हड्डियों, दांतों और मांसपेशियों के लिए आवश्यक है। कैल्शियम की कमी से हड्डियों का कमजोर होना, दांतों का खराब होना, आदि समस्याएं हो सकती हैं।
आयोडीन(iodine):
सूर्य की किरणें शरीर को आयोडीन प्रदान करती हैं, जो थायराइड ग्रंथि के लिए आवश्यक है। थायराइड ग्रंथि शरीर के चयापचय को नियंत्रित करती है। आयोडीन की कमी से थायराइड ग्रंथि के रोग हो सकते हैं।
प्रतिरक्षा प्रणाली(immunity):
सूर्य की किरणें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती हैं। प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर को संक्रमण से बचाती है।
अवसाद:
सूर्य की किरणें अवसाद को दूर करने में मदद करती हैं। सूर्य की रोशनी से शरीर में सेरोटोनिन नामक हार्मोन का उत्पादन होता है, जो मूड को बेहतर बनाने में मदद करता है।
धूप कब और कैसे लेनी चाहिए?(when and how to sunbath/sunlight exposure)
(१) प्रातःकाल के निकलते ही सूर्य की प्रथम रश्मियाँ (अल्ट्रावायलेट रेज) स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभप्रद हैं। उससे घटिया सायंकाल के समय डूबते हुए सूरज की किरणें हैं। सूर्य की किरणें नंगे बदन लेना चाहिए। स्त्रियाँ यदि नंगे बदन न ले सकें, तो एक बहुत पतला या झीना कपड़ा पहन लें। अब तो सूर्य चिकित्सा विज्ञान के आधार पर अनेक रोगों की सफल चिकित्सा हो रही है। सूर्य की धूप से रंगीन शीशों आदि का तैयार किया हुआ वैज्ञानिक ढंग से पानी तथा तेल आदि अनेक रोगों को दूर करने में समर्थ हुआ है।
(२) जाड़े के दिनों में दस बजे के पहले और गरमी में आठ बजे से पहले धूप स्नान कर लें। सरदी के दिनों में भले ही दोपहर को धूप लें। पर ऐसे समय में पैर घुटने तक कपड़े से ढके रहें और चेहरा हरे पत्तों से या कम से कम कपड़े से ढका रखें। करवट लेते रहें, ताकि सारे शरीर में धूप लगे। पाँच मिनट से प्रारंभ करके एक घंटे तक या और अधिक तक बढ़ाया जा सकता है। शरीर से तेजी से पसीने द्वारा विकार निकलता है और रोमकूप खुल जाते हैं। फिर स्नान कर लें। चर्मरोगों जैसे खाज, दाद, उकौता आदि में तथा स्नायु दुर्बलता तथा शारीरिक कमजोरी में धूप बहुत लाभ देती है। अस्थिक्षय में यह रामबाण है। पर फेफड़े के क्षय में रोगी सीधी धूप कभी भी न लें। वह घमसी लें। क्योंकि धूप से रोगों को उन्माद तेजी से होता है। विशेषकर जिन्हें बीमारी तेजी पर हो या जिन्हें एक बार भी खून आ गया है, ऐसे क्षयी, सीधी धूप से, के एक कम तेज धूप से बचें। वे प्रातः रश्मियों का सेवन कर सकते हैं, वह भी धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाकर। प्रखर सूर्य किरणों से तो स्वस्थ मनुष्य को भी बचना चाहिए।
धूप कब न लें?(when not to take sun bath/sunlight)
(१) तेज हवा चलती हो, बदली हो, पाला हो-उस दिन धूप स्नान स्थगित रखें। बहुत सरदी हो, तो एक हलका कपड़ा पहन सकते हैं।
(२) खाना खाने के बाद कम से कम एक घंटे तक धूप न लें।
(३) नहाने के भी तुरंत बाद धूप न लें। १०-१५ मिनट गुजर जाने दें।
(४) एनिमा लेने के १५-२० मिनट तक धूप न लें। वैसे ही धूप के १५-२० मिनट तक एनिमा न लें।
(५) दोपहर की प्रखर धूप से बचें। विटामिन ‘डी’ तो शरीर में अपने आप धूप में बैठने से
उत्पन्न हो जाता है। सरसों का तेल यदि धूप में रखकर गरम कर लें और फिर धूप में शरीर पर मलें, तो विटामिन ‘डी’ पैदा हो जाता है। यही कारण है कि माताएँ शिशुओं को धूप में लिटाकर उनके शरीर पर कड़आ तेल मलती हैं। विटामिन ‘डी’ की कमी से हड्डी और दाँत संबंधी रोग, हड्डी का टेढ़ा हो जाना, दाँतों का ठीक समय पर न निकलना, सूखा रोग, जुकाम, मिरगी, हिस्टीरिया, पीलिया, दाद, खुजली, उकौता, हृदयरोग, क्षय, इनफ्लुएंजा, निमोनिया आदि रोग हो जाते हैं। निर्धन मनुष्य भले ही दवा आदि तथा उन पदार्थों का प्रयोग करने में समर्थ न हों, जिनसे विटामिन ‘डी’ प्राप्त हो, पर धूप और धूप में तेल मालिश में तो कुछ खरच नहीं होता। अतः धनी-निर्धन, युवा, बाल-वृद्ध, स्त्री-पुरुष सभी को धूप और प्रकाश का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए। हमारे यहाँ सूर्य नमस्कार, सूर्य-पूजा आदि इसी से महर्षियों ने प्रचलित की। सूर्योदय से पूर्व नहा-धोकर, निकलते सूर्य को जल चढ़ाने की धार्मिक प्रथा है। उसके अंदर बड़ी अल्ट्रावायलेट किरण के लाभ वाली बात छिपी है ।